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जैसलमेर में ‘कर्रा रोग’ का कहर जारी: 500 से अधिक गोवंश काल का ग्रास, गांव-गांव पसरा मातम, सरकार और विशेषज्ञ टीमें अलर्ट पर

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राजस्थान के सीमांत जिले जैसलमेर में इन दिनों ‘कर्रा रोग’ एक बड़े संकट के रूप में उभरकर सामने आया है। यह बीमारी इतनी तेजी से फैल रही है कि अब तक जिले में 500 से अधिक गोवंश इसकी चपेट में आकर दम तोड़ चुके हैं। ग्रामीण इलाकों में इस रोग ने पशुपालकों के बीच भारी दहशत का माहौल बना दिया है। किसानों और चरवाहों की आजीविका पर गहरा असर पड़ा है। पशुधन के इस बड़े नुकसान से ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हो रही है।

गांव-गांव पसरा डर, लेकिन उम्मीद बाकी:
जिले के बड़ोड़ा, मुलाना, रीदवा, हमीरा, भागु का गांव, असायच, सोनू और मोकला चांधन जैसे अनेक गांवों में पशुपालक बेहद चिंतित हैं। कई बुजुर्ग ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में कभी ऐसा रोग नहीं देखा, जो इतनी तेज़ी से जानवरों को मौत के घाट उतारता हो। कुछ पशुपालकों ने रोते हुए बताया कि उन्होंने एक ही दिन में अपने तीन-चार मवेशियों को खो दिया। हालांकि, सरकार की मुस्तैदी और विशेषज्ञों की सक्रियता ने लोगों के दिलों में थोड़ी राहत की किरण भी जगाई है।

राज्य सरकार गंभीर, मुख्यमंत्री की सीधी निगरानी:
कर्रा रोग की भयावहता को देखते हुए राज्य सरकार ने तत्काल एक्शन लेते हुए जयपुर से वरिष्ठ पशु चिकित्सा विशेषज्ञों की टीम जैसलमेर भेजी है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा स्वयं पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं और लगातार अधिकारियों से फीडबैक ले रहे हैं। पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत भी पिछले सप्ताह जैसलमेर पहुंचे और स्थानीय प्रशासन के साथ उच्चस्तरीय बैठक कर हालात की समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि कोई भी पशुपालक इलाज या जानकारी के अभाव में न रहे।

विशेषज्ञों की टीम कर रही जमीनी जांच:
जयपुर से आई विशेषज्ञ टीम में डॉ. एस. के. झीरावला, डॉ. विकास कालव और डॉ. संदीप कुमार शर्मा शामिल हैं। इन विशेषज्ञों ने अब तक कई प्रभावित गांवों का दौरा किया है। उन्होंने ग्रामीणों से संवाद कर बीमार पशुओं की स्थिति का निरीक्षण किया और मिट्टी, चारे और मवेशियों के ब्लड सैंपल लिए। ये सैंपल जयपुर स्थित वेटरिनरी यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजे गए हैं।

क्या है कर्रा रोग? कैसे फैलता है यह संक्रमण?
विशेषज्ञों के अनुसार, कर्रा रोग एक प्रकार की बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जो अधिकतर गर्मी के मौसम में फैलती है। इसे स्थानीय भाषा में ‘करो’ भी कहा जाता है। यह रोग दूषित पानी, चारा और मिट्टी के माध्यम से गोवंश में प्रवेश करता है और मुख्यतः उनके पाचन तंत्र, लीवर और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।

मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:

भूख न लगना, शरीर में सूजन, तेज बुखार, सुस्ती और आंखों से पानी आना

मुंह से झाग निकलना

अचानक मृत्यु

यदि समय रहते इलाज न हो, तो यह रोग बहुत कम समय में पूरे झुंड को संक्रमित कर सकता है। फिलहाल इसका कोई सटीक इलाज नहीं है और लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है।

सरकार का सक्रियता अभियान और टीमें:
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. उमेश वरगंटीवार ने बताया कि सरकार ने इस संकट को गंभीरता से लिया है। विभाग ने विशेष टीमें गठित की हैं, जो गांव-गांव जाकर पशुपालकों को जागरूक कर रही हैं। बीमार पशुओं की पहचान, अलगाव और प्राथमिक उपचार के लिए हर पंचायत स्तर पर पशु चिकित्सकों की तैनाती की जा रही है। साथ ही, चारे और जल स्रोतों की स्वच्छता को लेकर ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

जांच रिपोर्ट का इंतजार, प्राथमिक उपाय लागू:
जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती, सरकार ने नियंत्रण के लिए प्राथमिक उपायों को अपनाने का आदेश दिया है। इसमें संक्रमित पशुओं को अलग रखना, साफ-सुथरा चारा-पानी देना, और सामूहिक दवाई छिड़काव जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि आने वाले 7-10 दिन इस रोग पर काबू पाने के लिए निर्णायक होंगे।

निष्कर्ष: क्या जल्द राहत मिलेगी?
कर्रा रोग जैसलमेर जिले के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनकर सामने आया है, लेकिन राज्य सरकार और विशेषज्ञों की तत्परता ने उम्मीद की किरणें भी पैदा की हैं। यदि सैंपल जांच और नियंत्रण उपाय समय रहते प्रभावी सिद्ध होते हैं, तो संभव है कि आने वाले दिनों में इस रोग पर काबू पाया जा सके। ग्रामीणों की अपेक्षा है कि सरकार उनकी आजीविका और पशुधन की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास जारी रखेगी।

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