दुनिया जिस रफ्तार से हरित ऊर्जा और तकनीकी विकास की ओर बढ़ रही है, उसी रफ्तार से एक धातु है जो वैश्विक बाज़ार का नया सितारा बन चुकी है—तांबा। इसे अब “नया सोना” कहा जा रहा है। यह उपमा महज़ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि तांबे की बढ़ती अहमियत और कीमतें इस बात का सबूत हैं कि आज की दुनिया में इसकी भूमिका अभूतपूर्व हो चुकी है।
तांबे का इस्तेमाल इंसान हजारों सालों से करता आ रहा है, लेकिन इसकी असली पहचान 19वीं सदी में बनी जब इसकी शानदार कंडक्टिविटी ने टेलीग्राफ और बिजली के युग को संभव बनाया। अमेरिका में आज भी करीब 70 लाख मील लंबे तांबे के तार बिछे हैं। वहीं, सोने को पारंपरिक रूप से ‘सुरक्षित निवेश’ माना गया है। लेकिन तांबा अब सिर्फ औद्योगिक धातु नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था का थर्मामीटर बन चुका है—इसीलिए इसे “डॉक्टर कॉपर” भी कहा जाता है।
2025 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा तांबा
केडिया कमोडिटीज़ के प्रेसिडेंट अजय केडिया के मुताबिक, 2025 की पहली तिमाही में तांबा 5.29 डॉलर प्रति पाउंड यानी 11,500 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया। यह पहली बार था जब तांबा 5 डॉलर की सीमा लांघ गया। सालभर में 18% की तेजी देखने को मिली, जो यह दर्शाता है कि निवेशक अब इसे लॉन्ग टर्म ग्रोथ के तौर पर देख रहे हैं। वहीं सोना भी पीछे नहीं रहा और 40% की छलांग के साथ अप्रैल 2025 में 3358 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया।
तांबे की मांग के पीछे कारण क्या हैं?
- क्लीन एनर्जी और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का उभार:
तांबे का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक मोटर, बैटरी, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और सौर पैनलों में होता है। जैसे-जैसे दुनिया डीकार्बनाइजेशन की ओर बढ़ रही है, तांबे की खपत तेज़ी से बढ़ रही है।
- डिजिटलाइजेशन:
फाइबर नेटवर्क, डेटा सेंटर और हाई-स्पीड इंटरनेट में भी तांबा अहम भूमिका निभाता है। आने वाले वर्षों में इसकी जरूरत और बढ़ेगी।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट:
अफ्रीका, भारत, चीन जैसे विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे के विस्तार ने तांबे की मांग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है।
तांबे की मांग बढ़ने के साथ-साथ आपूर्ति का संकट भी सामने आ गया है। चिली और पेरू जैसे देश, जो दुनिया का 40% तांबा उत्पादन करते हैं, वहां पुरानी खदानें, मजदूरों की हड़ताल, और पानी की कमी जैसी समस्याएं उत्पादन में बाधा डाल रही हैं।
2024 में खनन सिर्फ 4% बढ़ा, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि 2027 तक आपूर्ति में फिर गिरावट आ सकती है। Ero Copper के CEO ने 2025 की शुरुआत में चेतावनी दी थी:
“तांबे का संकट आ गया है। अब या तो नई टेक्नोलॉजी चाहिए, या फिर कीमतें और ऊपर जाएंगी।”
जियोपॉलिटिकल टेंशन से सप्लाई चेन पर असर
2025 में अमेरिका द्वारा तांबे पर टैरिफ लगाने की धमकी और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे घटनाक्रमों ने वैश्विक सप्लाई चेन को झटका दिया। लैटिन अमेरिका में “हमारे संसाधन, हमारे नियंत्रण में” जैसे आंदोलन ने भी विदेशी निवेशकों को डरा दिया है।
वहीं दूसरी ओर, चीन, जो दुनिया का 50% तांबा खपत करता है, ने 2024 के अंत में अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए निवेश और निर्माण में भारी पैसा झोंका, जिससे मांग और तेज हो गई।
तांबे का भविष्य: क्या यह सच में सोने को टक्कर देगा?
विशेषज्ञ मानते हैं कि सोना और तांबा दोनों के रोल अलग हैं – सोना सुरक्षित निवेश और मुद्रास्फीति से सुरक्षा देता है, जबकि तांबा आर्थिक विकास और तकनीकी भविष्य की कहानी कहता है। लेकिन एक बात साफ है – तांबा अब निवेशकों के रडार पर आ चुका है, और आने वाले दशकों में इसकी मांग, कीमत और रणनीतिक भूमिका लगातार बढ़ती रहेगी।
“नया सोना” केवल एक उपमा नहीं, बल्कि 21वीं सदी की हकीकत बनती जा रही है। तांबे की बढ़ती मांग, सीमित आपूर्ति, भू-राजनीतिक उठा-पटक और तकनीकी क्रांति ने इसे निवेश का नया चमकता सितारा बना दिया है। आने वाले समय में अगर दुनिया हरित ऊर्जा और डिजिटल युग की ओर बढ़ेगी, तो तांबा उस भविष्य की रीढ़ बनने वाला है।