वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर जसोल स्थित श्री राणी भटियाणीसा मंदिर में मंगलवार को भव्य धार्मिक आयोजन संपन्न हुआ। इस अवसर पर मंदिर परिसर में पूरे विधि-विधान, मंत्रोच्चार, विशेष श्रृंगार, छप्पन भोग और कन्या पूजन जैसे पारंपरिक आयोजनों के साथ श्रद्धा व भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला।
सुबह से ही श्रद्धालुओं का मंदिर परिसर में आना प्रारंभ हो गया था। जैसे-जैसे दिन चढ़ा, श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती गई और मंदिर प्रांगण में जयकारों की गूंज सुनाई देने लगी। मंदिर परिसर को आकर्षक पुष्पों, रंगोली एवं दीपों से सजाया गया था, जिससे वातावरण में एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस हो रही थी।
वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुई विशेष पूजा-अर्चना
मंदिर संस्थान की ओर से आयोजित इस भव्य आयोजन की शुरुआत सुबह मंगलध्वनि, शंखनाद और वैदिक ऋचाओं के उच्चारण के साथ हुई। विद्वान ब्राह्मणों द्वारा श्री राणी भटियाणी माता की विशेष पूजा-अर्चना की गई। मंदिर के प्रमुख पुजारियों द्वारा पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार सभी धार्मिक क्रियाएं संपन्न कराई गईं।
श्रद्धालु भक्तों ने विशेष पूजा में भाग लेकर माता राणीसा के दर्शन किए और अपने परिवारजनों की सुख-समृद्धि, आरोग्य और जीवन में सुखद संभावनाओं की कामना की।
इस शुभ अवसर पर फलौदी निवासी विकास सावना पुत्र श्री छोटमल सावना द्वारा पूरे जसोलधाम परिसर में स्थित समस्त देवालयों में छप्पन भोग अर्पित किए गए। छप्पन व्यंजनों में मिठाइयां, नमकीन, फल, सूखे मेवे, पकवान, तले-भुने और उबले व्यंजन शामिल थे, जिन्हें अत्यंत श्रद्धा भाव से देवी-देवताओं को समर्पित किया गया।
भोग अर्पण के पश्चात विशेष आरती का आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भक्तों ने सामूहिक रूप से भाग लिया और भाव-विभोर हो गए। जसोलधाम में स्थित श्री बायोसा, श्री सवाईसिंह जी, श्री लाल बन्ना सा, श्री खेतलाजी तथा श्री काला-गौरा भैरव जी के मंदिरों में भी विशेष पूजन और भोग अर्पण संपन्न किए गए।
कन्या-बटुक पूजन, सामाजिक समरसता का परिचायक
आयोजन की एक विशेष कड़ी के रूप में लाभार्थी परिवार ने सर्व समाज की कन्याओं एवं ब्राह्मण बटुकों का पूजन किया। उन्हें फल, मिठाई, भोजन और वस्त्र प्रसादम अर्पित कर सम्मानपूर्वक विदा किया गया। यह आयोजन हमारी सनातन परंपरा की उस जीवंत भावना को दर्शाता है जिसमें कन्याओं और ब्राह्मणों को देवस्वरूप मानकर पूजित किया जाता है।
श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़, दर्शन के लिए लंबी कतारें
इस विशेष दिन पर आसपास के गांवों, कस्बों और अन्य जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु जसोलधाम पहुंचे। सुबह से देर शाम तक मंदिर परिसर श्रद्धालुओं की भीड़ से गुलजार रहा। दर्शन व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए मंदिर समिति और स्वयंसेवकों की ओर से उत्तम प्रबंध किए गए थे। श्रद्धालुओं को छायादार टेंट, शीतल पेयजल व प्राथमिक चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराई गई।
पौराणिक महत्व और अक्षय तृतीया की दिव्यता
अक्षय तृतीया का पर्व हिंदू पंचांग में अत्यंत शुभ माना गया है। ‘अक्षय’ का अर्थ होता है जिसका क्षय न हो। इस दिन किया गया दान, जप, तप, व्रत एवं पूजा-पाठ अक्षय पुण्य देने वाला होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, और महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के लिए अक्षय पात्र प्रदान किया था।
अतः यह दिन हर प्रकार के शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, भूमि पूजन, वाहन क्रय, सोना-चांदी क्रय आदि के लिए विशेष रूप से उपयुक्त माना जाता है। जसोलधाम में हुए इस आयोजन ने इस मान्यता को धार्मिक आस्था के साथ चरितार्थ किया।
धार्मिक उल्लास और सांस्कृतिक एकता की अद्भुत मिसाल
दिनभर भजन-कीर्तन, सत्संग, आरती और प्रसाद वितरण के साथ जसोलधाम का वातावरण भक्तिरस में डूबा रहा। श्रद्धालुओं ने माता राणीसा के दरबार में गूंजते भजन सुनकर भक्ति भाव से ओतप्रोत होकर नृत्य भी किया। यह आयोजन न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक समरसता और सामाजिक सहभागिता की दृष्टि से भी अत्यंत प्रेरणास्पद सिद्ध हुआ।