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7 मई को जैसलमेर में मॉक ड्रिल: युद्धकालीन अभ्यास के लिए प्रशासन की पूरी तैयारी

Vikash Mali
5 Min Read

जैसलमेर में 7 मई को होगा देश का सबसे बड़ा नागरिक सुरक्षा अभ्यास, युद्धकालीन माहौल में परखी जाएगी आमजन की तैयारी

जैसलमेर। देश की पश्चिमी सीमा पर स्थित ऐतिहासिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण जैसलमेर शहर एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था के केंद्र में आ गया है। 7 मई, बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हो रही सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल में जैसलमेर भी शामिल होगा। यह अभ्यास देशभर के 244 नागरिक सुरक्षा जिलों और राजस्थान के 28 प्रमुख शहरों में एक साथ किया जाएगा। इसका उद्देश्य युद्ध, हवाई हमले या अन्य किसी भी आपातकालीन संकट के दौरान आम नागरिकों की सतर्कता, प्रशासन की तत्परता और सुरक्षा एजेंसियों की प्रतिक्रिया क्षमता का परीक्षण करना है।

यह मॉक ड्रिल ऐसे समय में हो रही है, जब हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश की सुरक्षा व्यवस्था को फिर से चिंतन का विषय बना दिया है। ऐसे में यह मॉक ड्रिल न केवल एक अभ्यास है, बल्कि एक गंभीर संदेश भी है कि भारत अब हर प्रकार की आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार है।

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कैसा होगा मॉक ड्रिल का स्वरूप?

ड्रिल के दौरान जैसलमेर सहित सभी चयनित जिलों में युद्धकाल के माहौल की हूबहू नकल की जाएगी। शाम के समय अचानक तेज सायरन बजाया जाएगा जिसकी आवाज़ 2 से 5 किलोमीटर दूर तक सुनाई देगी। इसके साथ ही ब्लैकआउट की स्थिति बनाई जाएगी—शहर की सड़कें अंधेरे में डूब जाएंगी, घरों, प्रतिष्ठानों और सरकारी इमारतों की लाइटें बंद की जाएंगी, और स्ट्रीट लाइट्स, मोबाइल फ्लैशलाइट्स व टॉर्च का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित रहेगा।

लोगों को यह बताया जाएगा कि ऐसी स्थिति में उन्हें कहाँ जाना है, क्या करना है, किससे संपर्क करना है और अफवाहों से कैसे बचना है। बच्चों, वृद्धों, महिलाओं और विशेष आवश्यकता वाले नागरिकों को कैसे सुरक्षित किया जाए, इस पर भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।

1971 के युद्ध के बाद सबसे बड़ा अभ्यास

विशेष बात यह है कि यह अभ्यास भारत-पाक युद्ध 1971 के बाद देश में अब तक का सबसे बड़ा और संगठित सिविल डिफेंस ड्रिल होगा। उस युद्ध की विभीषिका झेल चुके जैसलमेर जैसे सीमांत क्षेत्र में इस ड्रिल को लेकर लोगों के बीच रोमांच, जिज्ञासा और उत्साह चरम पर है।

जिला प्रशासन और नागरिक सुरक्षा इकाइयों ने बीते कई दिनों से सायरनों की टेस्टिंग, ड्रोन की जांच, बचाव उपकरणों की व्यवस्था, और जनता को जागरूक करने के कार्यक्रम शुरू कर दिए थे। मंगलवार को स्कूली बच्चों को युद्धकालीन परिस्थितियों में स्वयं को सुरक्षित रखने के तरीके भी सिखाए गए।

कलेक्टर स्वयं ले रहे हैं तैयारियों की समीक्षा

जैसलमेर के जिला कलेक्टर प्रताप सिंह ने खुद मौके पर पहुंचकर नागरिक सुरक्षा अधिकारियों, पुलिस और आपदा प्रबंधन विभाग के साथ ड्रिल स्थलों का निरीक्षण किया और आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। उन्होंने बताया कि जिले की सभी सिविल डिफेंस टीमें अलर्ट मोड में हैं, और ड्रिल को वास्तविक परिस्थितियों के अधिकतम नज़दीक ले जाने के लिए हर स्तर पर तैयारियां की गई हैं।

वापस मैदान में उतरीं पुरानी सायरन मशीनें

ड्रिल की खास बात यह है कि 1971 युद्ध के दौरान इस्तेमाल की गई हाथ से चलने वाली सायरन मशीनों को भी एक बार फिर बाहर निकाला गया है। इन्हें साफ कर टेस्टिंग की जा रही है, ताकि यदि आधुनिक उपकरण किसी कारणवश फेल हों, तो ये पुराने संसाधन बैकअप के तौर पर काम आ सकें।

जनमानस में चर्चा का केंद्र बनी मॉक ड्रिल

इस राष्ट्रीय मॉक ड्रिल को लेकर जैसलमेर शहर में जबरदस्त उत्सुकता देखी जा रही है। चाय की थड़ियों, बाजारों, स्कूलों, कार्यालयों और घरों में इसी मुद्दे पर चर्चा हो रही है। लोग एक-दूसरे से पूछते नजर आ रहे हैं—क्या होगा अगर सचमुच ऐसा कुछ हो गया? किस तरह तैयार रहना चाहिए? बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में एक तरह की जागरूकता और आत्मरक्षा का नया भाव उत्पन्न हो गया है।

यह मॉक ड्रिल केवल एक अभ्यास नहीं है, बल्कि सामाजिक, प्रशासनिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा सबक और चेतावनी है कि आपातकाल कभी भी आ सकता है और उसके लिए हर नागरिक को तैयार रहना होगा। जैसलमेर जैसे सीमांत क्षेत्र में इस तरह की ड्रिल से देशभर के अन्य जिलों को भी एक अनुकरणीय उदाहरण मिलेगा।

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