कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले ने एक बार फिर भारत की सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क कर दिया है। इस आतंकी हमले में निर्दोष नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना बनाया गया, जिससे पूरे देश में रोष की लहर फैल गई है। इसके बाद केंद्र सरकार ने देशभर में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल आयोजित करने के निर्देश दिए हैं, ताकि युद्ध या आपदा जैसी स्थिति में आम नागरिकों को जागरूक किया जा सके।
इस ड्रिल के तहत राजस्थान के जैसलमेर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र तनोट को विशेष रूप से शामिल किया गया है। तनोट पाकिस्तान की सीमा से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और 1965 तथा 1971 के युद्धों में इसने इतिहास रचा है। यह वही गांव है जहां युद्ध के दौरान दर्जनों बम गिरे थे, लेकिन भगवान तनोट राय मंदिर की कृपा मानी गई कि वे बम कभी फटे नहीं।
“हमने युद्ध देखे हैं, लेकिन आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं” – बसरू राम
तनोट के बुजुर्ग निवासी बसरू राम, जो अब 80 वर्ष के हैं, बताते हैं कि वे 1965 से इस इलाके में रह रहे हैं। उन्होंने कहा,
1965 के युद्ध में हमें अपने गांव छोड़कर रामगढ़ जाना पड़ा था। बम हमारे खेतों में गिरे थे, लेकिन फटे नहीं। हम फिर लौटे, क्योंकि यह हमारी जन्मभूमि है। लेकिन अब तक सरकार ने इस क्षेत्र को उतनी प्राथमिकता नहीं दी, जितनी सरहदी इलाकों को मिलनी चाहिए।
उनका मानना है कि हालात अगर बिगड़ते हैं तो भारत को पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाना चाहिए।
पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। आतंकवादियों को खुलेआम पनाह मिल रही है। फ्लैग मीटिंग में आने से भी इनकार कर रहे हैं। अब बस कड़ी कार्रवाई की जरूरत है।
गांव में आस्था, लेकिन सुविधाओं का अभाव
तनोट गांव की पहचान न केवल इसकी देशभक्ति से है, बल्कि यहां के मंदिर में बसे विश्वास से भी है। 1965 के युद्ध में मंदिर के प्रांगण में बम गिरने के बावजूद मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था। आज भी ग्रामीणों को लगता है कि ये मंदिर ही उनकी रक्षा करता है। लेकिन इसके साथ ही वे सरकारी उपेक्षा से भी आहत हैं।
“पिछले 10 दिनों से पानी की एक बूंद नहीं मिली” – नूतन कुमार
गांव के एक अन्य निवासी नूतन कुमार ने बताया कि बम और मिसाइलों से वे नहीं डरते, लेकिन पानी की कमी सबसे बड़ा संकट है।
हम रोज़ 4-5 किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं। पिछले 10 दिनों से गांव में पानी नहीं आया। यह समस्या आज की नहीं है, सालों से है। लेकिन सुनवाई कोई नहीं करता। मॉक ड्रिल जरूरी है, लेकिन साथ ही मूलभूत सुविधाएं भी।”
बीएसएफ के साथ गांववाले भी तैयार
गांव में बीएसएफ की मौजूदगी निश्चित ही सुरक्षा का अहसास कराती है, लेकिन ग्रामीणों ने खुद भी आपातकालीन स्थिति के लिए तैयारी कर रखी है। सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल के तहत उन्हें सिखाया जा रहा है कि सायरन बजने पर कैसे रिएक्ट करना है, कहां शरण लेनी है और कैसे अफवाहों से बचना है।
ड्रोन कैमरे, सायरन सिस्टम, हैंड सायरन, और नागरिकों के लिए बनाए गए सुरक्षा निर्देशों की समीक्षा की जा रही है। वहीं, स्कूलों में बच्चों को मॉक ड्रिल का अभ्यास कराया जा रहा है ताकि भविष्य में किसी वास्तविक आपात स्थिति में वे भयभीत न हों।
देश के लिए जीने-मरने का जज्बा कायम
बावजूद इसके कि सरकार से शिकायतें हैं, तनोट के लोगों का देशभक्ति से भरा जज्बा आज भी अडिग है। वे मानते हैं कि यदि देश के लिए एक और युद्ध लड़ना पड़ा तो वे फिर से हर कुर्बानी देने को तैयार हैं।