जोधपुर। बाड़मेर: बहुचर्चित कमलेश प्रजापत एनकाउंटर केस ने एक बार फिर राजस्थान की राजनीति और पुलिस प्रशासन को झकझोर कर रख दिया है। जोधपुर स्थित सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए पूर्व राजस्व मंत्री हरीश चौधरी और उनके भाई मनीष चौधरी के खिलाफ रिपोर्ट तलब की है। कोर्ट की इस सख्त कार्रवाई के बाद राज्य की सियासत में हलचल मच गई है और इस मामले ने एक बार फिर कानून-व्यवस्था और सत्ता से जुड़े प्रभावशाली लोगों की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
CBI की जांच में चौंकाने वाले खुलासे
मामले की जांच कर रही केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने अपनी रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। जांच के दौरान ऐसे संकेत मिले हैं जो इस एनकाउंटर को एक सोची-समझी साजिश की ओर इशारा करते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पूरे घटनाक्रम में ऊंचे स्तर की मिलीभगत की आशंका है, और इसीलिए इसमें राजनीतिक हस्तियों की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच आवश्यक है।
परिजनों का आरोप – साजिश के तहत मारा गया कमलेश
मृतक कमलेश प्रजापत के परिजनों का शुरू से ही यह आरोप रहा है कि कमलेश को एक फर्जी मुठभेड़ में सुनियोजित तरीके से मार गिराया गया। परिजनों का कहना है कि कमलेश क्षेत्र में राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय था और भ्रष्टाचार के खिलाफ खुलकर आवाज उठा रहा था। यही वजह थी कि कुछ प्रभावशाली लोग उसकी गतिविधियों से असहज थे और उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाई गई।
कोर्ट का निर्देश – निष्पक्ष और गहन जांच हो
कोर्ट ने सीबीआई को निर्देशित किया है कि वह हरीश चौधरी और मनीष चौधरी की भूमिका की विस्तृत रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत करे। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी राजनीतिक दबाव या प्रभाव के बिना निष्पक्ष जांच हो। कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस प्रकार के मामलों में कानून के राज की स्थापना और आमजन का विश्वास बहाल करना अत्यंत आवश्यक है।
राजनीतिक गलियारों में मचा हड़कंप
कोर्ट की इस सख्ती के बाद राजस्थान की सियासत में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है और इसे सत्ता के संरक्षण में पनप रही गुंडागर्दी का उदाहरण बताया है। वहीं, कांग्रेस पार्टी फिलहाल मामले पर चुप्पी साधे हुए है।
क्या है कमलेश प्रजापत एनकाउंटर केस?
यह मामला पिछले कुछ वर्षों से चर्चा में है, जब बालोतरा निवासी कमलेश प्रजापत को पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मार गिराया गया था। प्रारंभ में पुलिस ने इसे एक आम एनकाउंटर बताया था, लेकिन धीरे-धीरे सामने आई घटनाएं और सबूतों ने इस मुठभेड़ की वैधता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। इसके बाद परिजनों और समाजिक कार्यकर्ताओं के दबाव में मामला सीबीआई को सौंपा गया।
आगे क्या?
अब सबकी निगाहें सीबीआई की अगली रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि हरीश चौधरी और मनीष चौधरी की इस मामले में क्या भूमिका थी और क्या उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाएगी। यह मामला न सिर्फ एक फर्जी एनकाउंटर की जांच है, बल्कि यह भी परखेगा कि राजस्थान में न्याय व्यवस्था और कानून का राज कितना मजबूत है।