भारत-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते तनाव के चलते न केवल सीमांत गांवों में जनजीवन प्रभावित हुआ है, बल्कि इसका प्रभाव अब दुर्लभ वन्यजीवों पर भी दिखने लगा है। जैसलमेर स्थित सम गोडावण ब्रिडिंग सेंटर में गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी गोडावण (Great Indian Bustard) के संरक्षण के मद्देनज़र 9 कृत्रिम रूप से जन्मे चूजों को अजमेर स्थित सुरक्षित केंद्र में शिफ्ट किया गया है।
गौरतलब है कि सीमा पर ड्रोन मूवमेंट, पैराशूट बम व मिसाइलों की आवाजाही के बाद वन विभाग की सतर्कता और बढ़ गई। हालात को देखते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) अरिजीत बनर्जी के निर्देश पर यह निर्णय लिया गया कि पहले चरण में 9 चूजों को जैसलमेर से करीब 700 किलोमीटर दूर अजमेर के अरवड स्थित मेनस लेसर फ्लोरिकन सेंटर में भेजा जाए।
वैज्ञानिकों की निगरानी में हुआ चूजों का शिफ्टिंग ऑपरेशन
यह ऑपरेशन वन विभाग, भारतीय सेना, जिला प्रशासन और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के वैज्ञानिकों के सहयोग से अंजाम दिया गया। जैसलमेर डीएफओ की टीम ने चूजों को विशेष एंबुलेंस में फलौदी तक पहुंचाया, जहां से जोधपुर डीएफओ मोहित गुप्ता और उनकी टीम ने जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद पाली डीएफओ के नेतृत्व में चूजों को अजमेर सेंटर तक सुरक्षित पहुंचाया गया।
भारत-पाक युद्ध विराम के कारण फिलहाल शिफ्टिंग रोकी गई
मुख्य वन संरक्षक (CCF) आरके जैन ने बताया कि पहले चरण की सफलता के बाद अब दूसरे चरण के लिए सरकार से दिशा-निर्देश मांगे गए हैं। युद्धविराम की स्थिति को देखते हुए फिलहाल बाकी चूजों की शिफ्टिंग प्रक्रिया रोक दी गई है। राज्य सरकार और वन विभाग की प्राथमिकता इन चूजों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, क्योंकि ये प्रोजेक्ट करोड़ों रुपए की लागत से चलाया जा रहा है और देश में गोडावण की संख्या पहले ही चिंताजनक रूप से कम हो चुकी है।
वन विभाग और डब्ल्यूआईआई की वैज्ञानिक टीम सम ब्रिडिंग सेंटर में 24 घंटे निगरानी में जुटी है। बमबारी की घटनाओं के बाद से ही गोडावण सेंटर में अलर्ट बढ़ा दिया गया है। विभाग का मानना है कि इस संकट की घड़ी में गोडावण जैसे संकटग्रस्त पक्षी की रक्षा सर्वोपरि है।