बालोतरा किटनोद। राजस्थान की मिट्टी के कई रंग है। क्षेत्रीय परंपराएं इस बात की गवाह हैं। हम एक अनोखी परंपरा का जिक्र करने जा रहे हैं। बहनें भाईयों की लंबी आयु के लिए समंदर हिलोरा उत्सव में शामिल होती हैं। भाई और बहन के पवित्र बंधन को बाधे समंदर हिलोरा का पावन पर्व मनाते हैं। ये परम्परा वर्षों से चली आ रही है। यह आयोजन श्रावणी तीज के दिन होता है। जिसमें सूर्य की पहली किरण के साथ ही लोगो में उल्लास का माहौल रहता है। धीरे धीरे लोग के तालाब पर पहुंचने सिलसिला शुरू होता है। जहां भाई और बहिनें तालाब की पूजा अर्चना करते हैं। यहां घुघरी मातर का भोग लगाया जाता है। जिसके बाद भाई और बहन एक दूसरे को पानी पिलाते हैं। उसके बाद भाई अपनी बहनों से उपहार देकर और चुनरी ओढाकर आर्शीवाद लेते हैं।

तालाब के पानी में मटका डालकर भाई और बहन उसे उसे हिलाते हैं। परंपरा के अनुसार इसे समंदर हिलोरा कहा जाता है। मटके में पानी भर जाने के बाद उसे सिर पर उठाया जाता है। बाद में रिवाज के अनुसार मटके का पानी भाई अपने हाथ से बहन को पिलाता है।

रविवार को किटनोद की नाडी व मरूगंगा लूणी नदी किनारे पर लोगों ने तालाब पूजन किया। इस दौरान उन्होंने तालाब हिलोरने की रस्म पूरी की एवं सुख शांति की कामना की। तालाब पर पहुंची बहिनों के तालाब हिलोरने के लिए लाए गये मटके आकर्षण का केंद्र रहे। मटकों पर उकेरी कलाकृति लोगों को लुभा रही थी। वहीं महिलाओं ने पारंपरिक राजस्थानी गीत गाकर उत्साह से समंदर हिलोरने की परंपरा का निर्वहन करते किया। तालाब पर 21 महिलाओं ने भाग लिया। जिसमें 15 कलबी समाज व 6 माली समाज की महिलाओं ने समंदर हिलोरा रस्म निभाई। कलबी समाज ने नाड़ी में व माली समाज की महिलाओं ने लूणी नदी किनारे समंदर हिलोरा। इसके बाद रेहाण एवं प्रसादी का आयोजन भी किया गया।