Skip to content

कल्याणपुर का दर्द: जोधपुर की फैक्ट्रियों से बहता जहर, डोली गांव की अर्थी रोक ली विकास की सड़क पर

Narpat Mali
4 Min Read

राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित कल्याणपुर और उसके आसपास के गांव एक बार फिर जहरीले पानी की विभीषिका से जूझ रहे हैं। जोधपुर की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला कास्टिक युक्त रासायनिक पानी जोजरी नदी के बहाव के साथ डोली और अराबा जैसे गांवों तक पहुंच रहा है, जिससे हालात दिन-ब-दिन भयावह होते जा रहे हैं।

इस बार मामला उस हद तक पहुंच गया, जहां ग्रामीणों को एक शव के साथ नेशनल हाईवे 25 पर बैठना पड़ा। गुस्से से भरे ग्रामीणों ने शव को मुक्तिधाम ले जाने से इंकार कर दिया, क्योंकि डोली गांव के श्मशान घाट में जहरीला रासायनिक पानी भरा हुआ है। प्रदर्शनकारियों ने साफ कह दिया – जब तक समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता, तब तक अंतिम संस्कार नहीं होगा।

चार किलोमीटर लंबा जाम, मृत देह के साथ आंदोलन

कल्याणपुर का दर्द: जोधपुर की फैक्ट्रियों से बहता जहर, डोली गांव की अर्थी रोक ली विकास की सड़क पर 1001176638
4 किलोमीटर तक लगा जाम

प्रदर्शन के चलते हाईवे पर चार किलोमीटर लंबा ट्रैफिक जाम लग गया। यात्री बसें, ट्रक और निजी वाहन घंटों तक रास्ते में फंसे रहे। लेकिन ग्रामीणों की पीड़ा इतनी गहरी है कि वे अब किसी असुविधा से डरते नहीं। वे कहते हैं – “हम तो पहले से ही मरते हुए जी रहे हैं। इस जहरीले पानी ने हमारी ज़िंदगी, हमारी ज़मीन, हमारा पानी – सब कुछ छीन लिया है। अब तो मौत भी हमें तड़पा रही है।”

श्मशान घाट बना रासायनिक तालाब

डोली गांव के जिस श्मशान घाट में अंतिम संस्कार होना था, वहां पिछले कई दिनों से फैक्ट्रियों के कास्टिक केमिकल से भरा जहरीला पानी जमा है। यह दृश्य सिर्फ प्रदूषण की कहानी नहीं कहता, बल्कि एक पूरे तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करता है।

वर्षों पुरानी पीड़ा, लेकिन समाधान शून्य

कल्याणपुर का दर्द: जोधपुर की फैक्ट्रियों से बहता जहर, डोली गांव की अर्थी रोक ली विकास की सड़क पर 1001176748
सरकारी स्कूल में भरा रासायनिक पानी

यह समस्या आज की नहीं है। बीते कई वर्षों से जोधपुर की फैक्ट्रियों से निकला रासायनिक कचरा जोजरी नदी के ज़रिए कल्याणपुर, डोली, अराबा और आस-पास के गांवों तक पहुंच रहा है। यहां के लोगों के पास अब पीने लायक पानी नहीं बचा है, न ही खेतों में फसल उगाने की उम्मीद रही। बच्चों की सेहत, बुजुर्गों की सांसें और महिलाओं की दिनचर्या – सब कुछ इस जहरीले पानी की गिरफ्त में आ गया है।

राजनीति और वादों का दोगलापन

समस्या को लेकर अतीत में कई बार प्रदर्शन हुए। बड़े नेता आए, वादे हुए, घोषणाएं की गईं लेकिन धरातल पर ना तो कोई ट्रीटमेंट प्लांट लगा, ना ही प्रदूषण की निकासी को रोकने की योजना बनी। यही कारण है कि ग्रामीणों का सरकार और प्रशासन से भरोसा अब पूरी तरह उठ चुका है।

ग्रामीणों का यह आंदोलन सिर्फ एक विरोध नहीं है यह उस असहनीय दर्द की अभिव्यक्ति है, जिसे प्रशासनिक मशीनरी ने वर्षों से अनदेखा किया है।

जब अंतिम यात्रा के लिए भी रास्ता न बचे, तो विकास की बातें एक क्रूर मज़ाक लगती हैं।

यह कोई तस्वीर नहीं, बल्कि व्यवस्था की संवेदनहीनता का आईना है।

डोली के लोग वर्षों से जहर पीकर जी रहे हैं – अब तो मुक्ति का रास्ता भी जहर में डूबा है।

अब सवाल यह है – क्या सत्ता में बैठे लोग इस दर्द को सुनेंगे? या फिर यह तंत्र तब ही जागेगा, जब हर गांव की हर अर्थी इसी तरह सड़क पर उतर आएगी?

Share This Article